जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
|
6 पाठकों को प्रिय 419 पाठक हैं |
औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
देह-रक्षा
उन दिनों मैं लिडिंगो वाले घर में रहा करती थी। समूचा शहर बर्फबारी से शुभ्र-सफेद हो उठा था। ऐसी श्वेत-सफेद दुनिया मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। पेड़ों के तमाम पत्ते हरे से पीले हो गए; पीले-से लाल; शरत के अंत तक लाल पत्ते भी पुराने पड़कर फीके बेरंग हो गए और झर गए। बाद के समय में दिन-रात छोटे हो जाते हैं। इस तरफ शरद विदा हो जाता है और सर्दी आ पहुँचती है और उधर दक्षिणी यूरोप में उस वक्त भी शरद का मौसम महासमारोह के साथ जारी रहता है।
मेरा तो कहना है कि भारतीय उपमहादेशों में कुल दो ही मौसम होते हैं। एक गर्मी का मौसम और दूसरा, घोर गर्मी का मौसम! यहाँ इस उत्तरी यूरोप में भी दो ही मौसम होते हैं। एक, सर्दी का मौसम और दूसरा, घोर सर्दी का मौसम! हमारे यहाँ, छः ऋतुएँ होती हैं, इन लोगों के यहाँ चार ऋतुएँ होती हैं। इन लोगों के यहाँ वर्षा और हेमंत ऋतु नहीं होती। सर्दी के मौसम में पत्ते झर जाते हैं और सारे पेड़ पत्रहीन हो जाते हैं। उन पत्रहीन, ठूठ पेड़ों पर बर्फ झरती है और तमाम पेड़ श्वेत-शुभ्र रंग ओढ़ लेते हैं। मानो समूचे सफेद पेड़ों पर सफेद-सफेद फूल खिल उठे हों। सर्दी के मौसम में एक और बदलाव आता है, जो मुझे सख्त नापसंद है, वह है अँधेरा।
मेरी लेखिका मित्र माइब्रिट ने एक दिन मुझसे कहा, "चलो, तुम्हें बर्फ पर पैदल-पैदल सैर करा लाऊँ।"
मैं महाखुश!
अगले दिन माइब्रिट जैसे ही आई, मैं उसे साथ लेकर निकल पड़ी।
"पुलिस को खबर नहीं दी?" उसने पूछा।
"अरे कोई खास बात नहीं है, कुछ नहीं होगा। आस-पास ही तो जा रहे हैं।"
"हाँ, यह सच था। हम दोनों आस-पास ही तो गए थे। घर के करीब वाले मैदान में! बर्फ से कितनी-कितनी तरह के खेल खेले जाते हैं, माइब्रिट दिखाती रही।
वहीं, उस बरफ में ही, मैं अचानक चौंक उठी, मानो मैंने कोई भूत देख लिया हो। सामने ही दो पुलिस!
"क्या बात है? तुम यहाँ कैसे?"
"बस, चली आई।"
"चली आई का क्या मतलब? हमें खबर क्यों नहीं दी?"
“पास ही तो जाना था! जरा बर्फ में टहलना चाहती थी, इसके लिए तुम
लोगों को क्यों तकलीफ देती?"
"यही हमारी नौकरी है। हमारी तकलीफ के बारे में तम्हें सोचने की जरूरत नहीं है। फिर कभी ऐसी गलती मत करना, समझीं? कभी भी, हमारे विना, बाहर कदम मत रखना।"
मुझे लिडिंगो के मकान की नवीं मंजिल पर ले जाकर, मुझे अंदर करके बाहर से ताला जड़कर सुरक्षाकर्मी चले गए।
|
- जंजीर
- दूरदीपवासिनी
- खुली चिट्टी
- दुनिया के सफ़र पर
- भूमध्य सागर के तट पर
- दाह...
- देह-रक्षा
- एकाकी जीवन
- निर्वासित नारी की कविता
- मैं सकुशल नहीं हूँ